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अका॑रि॒ ब्रह्म॑ समिधान॒ तुभ्यं॒ शंसा॑त्यु॒क्थं यज॑ते॒ व्यू॑ धाः। होता॑रम॒ग्निं मनु॑षो॒ नि षे॑दुर्नम॒स्यन्त॑ उ॒शिजः॒ शंस॑मा॒योः ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

akāri brahma samidhāna tubhyaṁ śaṁsāty ukthaṁ yajate vy ū dhāḥ | hotāram agnim manuṣo ni ṣedur namasyanta uśijaḥ śaṁsam āyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अका॑रि। ब्रह्म॑। स॒म्ऽइ॒धा॒न॒। तुभ्य॑म्। शंसा॑ति। उ॒क्थम्। यज॑ते। वि। ऊ॒म् इति॑। धाः॒। होता॑रम्। अ॒ग्निम्। मनु॑षः। नि। से॒दुः॒। न॒म॒स्यन्तः॑। उ॒शिजः॑। शंस॑म्। आ॒योः॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:6» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:5» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (समिधान) प्रकाशमान विद्वन् ! जो (नमस्यन्तः) नम्रता और (उशिजः) कामना करते हुए (मनुषः) मनुष्य (आयोः) जीवन की (शंसम्) प्रशंसा को और (होतारम्) देनेवाले को (अग्निम्) अग्नि के सदृश (नि, सेदुः) प्राप्त होते हैं और जो (तुभ्यम्) आपके लिये (उक्थम्) स्तुति करने योग्य (ब्रह्म) बड़े धन की (शंसाति) प्रशंसा करे (यजते) तथा विशेषता ही से मिलते हुए के लिये जिनसे आप ने ऐश्वर्य्य (अकारि) किया उनको (वि, उ, धाः) धारण कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! वा राजन् ! जो आपके लिये ऐश्वर्य की कामना करते हुए परमेश्वर और विद्वानों को नमस्कार करते हैं, वे निरन्तर प्रशंसित होते हैं ॥११॥ इस सूक्त में विद्वान् और ईश्वर के गुण वर्णन करने से इस के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११॥ यह छठवाँ सूक्त और पाँचवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे समिधान विद्वन् ! ये नमस्यन्त उशिजो मनुष आयोः शंसं होतारमग्निं निषेदुर्य्यस्तुभ्यमुक्थं ब्रह्म शंसाति यजते यैस्त्वमैश्वर्य्यमकारि तान् व्युधाः ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अकारि) क्रियते (ब्रह्म) महद्धनम् (समिधान) देदीप्यमान (तुभ्यम्) (शंसाति) प्रशंसेत् (उक्थम्) स्तोतुमर्हम् (यजते) सङ्गच्छते (वि) (उ) वितर्के (धाः) धेहि (होतारम्) दातारम् (अग्निम्) पावकमिव (मनुषः) मनुष्याः (नि) (सेदुः) निषीदन्ति (नमस्यन्तः) नम्रतां कुर्वन्तः (उशिजः) कामयमानाः (शंसम्) प्रशंसाम् (आयोः) जीवनस्य ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् राजन् वा ! ये त्वदर्थमैश्वर्य्यं कामयमानाः परमेश्वरं विदुषश्च नमस्यन्ति ते सततं प्रशंसिता जायन्त इति ॥११॥ अत्र विद्वदीश्वरगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥११॥ इति षष्ठं सूक्तं पञ्चमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान किंवा राजा ! जे तुझ्यासाठी ऐश्वर्याची कामना करीत परमेश्वर व विद्वानांना नमस्कार करतात ते सतत प्रशंसित होतात. ॥ ११ ॥